राजनीतिक रस्साकशी में निर्णायक : कौन ?

 


 


राजनीतिक रस्साकशी में निर्णायक : कौन ?


       मेरे एक पत्रकार मित्र का फोन आया और मुझे कहा कि जौनसार बावर के पांच ऐसे नाम बताओ जिनकी सामाजिक मान्यता हो परंतु किसी राजनीतिक दल अथवा व्यक्ति का ठप्पा उन व्यक्तियों पर ना हो शायद वह उन लोगों को किसी सामाजिक संगठन में जुड़ने की बात कह रहे थे ।
      जौनसार बावर में लंबे समय से सामाजिक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करने के कारण बहुत सारे लोगों से परिचय भी है परंतु सच बताऊं लखवाड से लेकर लोखंडी होते हुए कथियान तक मुझे ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो सामाजिक क्षेत्र में अग्रणीय हो और राजनीतिक रूप में उस पर किसी व्यक्ति अथवा दल का ठप्पा ना हो ...
     फिर मन में विचार आया कि  गांव में जिसे हम समझदार मानते हैं वह किसी ना किसी राजनीतिक दल का एजेंट है तो उस व्यक्ति से हम निष्पक्ष न्याय की उम्मीद कैसे रख सकते हैं ?  बस आज जौनसार बावर में ऐसे ही निष्पक्ष एवं राजनीतिक रूप से निरपेक्ष व्यक्तियों का ही अभाव है !
    राजनीति की इस रस्साकशी में निर्णायक की भूमिका में मुझे कोई भी व्यक्ति नहीं दिखता । मेरे कहने का तात्पर्य है कि गांव में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की शुरुआत हो चुकी है अपने-अपने समीकरण बिठाने के लिए सब लोग गुणा - भाग में लगे हुए हैं कुछ लोग निर्विरोध - निर्वाचन के पक्ष में भी है ! हर गांव में दो दल खड़े हैं और दोनों ही दलों में रस्साकशी के लिए लोग तैयार है मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि इस लोकतंत्र में राजनीति की इस रस्साकशी में निर्णायक की भूमिका में आखिर कौन है? जिस पर लोग विश्वास करें यदि हम जौनसार बावर के 20 -25 वर्ष पूर्व में जाएं तो हमें गांव में अनेक लोग ऐसे मिल जाते थे जो लोकतंत्र के पर्व चुनाव में अपने मत का प्रयोग तो करते थे परंतु पता नहीं लग पाता था कि उन्होंने अपना मत का प्रयोग किस व्यक्ति अथवा दल के लिए किया, शायद निर्वाचन में इसलिए गोपनीयता का भी प्रावधान है। और वही व्यक्ति कहीं ना कहीं गांव अथवा समाज में सर्वमान्य भी होते थे और राजनीति कटुता के कारण गांव के आंगन को बटने से बचा लेते थे ।
   आज राजनीतिक कटुता के कारण गांव दो दलों में इसीलिए विभाजित हो जाते हैं कि हमारे पास निर्णायक भूमिका वाला व्यक्ति नहीं है कहने का तात्पर्य है की आज हर व्यक्ति पर सार्वजनिक राजनीतिक ठप्पा है और इसलिए वह व्यक्ति सार्वजनिक न्याय करने में  असमर्थ है भले ही वह पंच परमेश्वर मानकर अपना निर्णय गांव के किसी कार्य में देते होंगे परंतु दूसरे दल के लोगों में उस व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह है, इसलिए  उसके  निर्णय पर भी राजनीतिक बाधा उत्पन्न होती है ।
   अर्थात लोकतंत्र के इस पर्व में हम राजनीति के कारण अपने संबंधों को खराब ना करें हो सके तो अपने - अपने गांव में निर्विवाद निर्वाचन की सहमति बनाएं ।अनेक ऐसे गांव है जो आजादी के पश्चात आज तक निर्विरोध ही निर्वाचन करते आए हैं ताकि गांव में राजनीति कटुता के कारण हमारा सामूहिक ताना-बाना एवं गांव का आंगन दो खेमों मे ना बटे  । प्रधान - प्रमुख अथवा जिला पंचायत  ही सब कुछ नहीं है  सामाजिक कार्यों में रुचि रखने वाले मनीषियो को पीढ़ियों तक याद किया जाता है ! 
      हमने जौनसार बावर की दिवंगत विभूतियां पुस्तक का प्रकाशन किया है जिसमें 91 विभूतियों का उल्लेख है परंतु उस पुस्तक में प्रधान अथवा क्षेत्र पंचायत सदस्यों के लिए कहीं भी जगह नहीं मिली । हां सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति के बारे में हमने बारीकी से अध्ययन किया व दिवंगत विभूतियां पुस्तक में ससम्मान स्थान दिया । 
     इसलिए यदि हम लोग त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कोई प्रत्याशी नहीं बन पाए तो यह अपराध नहीं है और ना ही हमारी प्रगति में कोई अवरोध है राजनीति में हिस्सा जरूर लीजिए परंतु यदि इस राजनीति के कारण हमारे अपने ही अपने से कट जाए तो मुझे लगता है यह लोकतंत्र का तकाजा नहीं है। राजनीति तोड़ने के लिए नहीं जोड़ने के लिए कीजिए ।
                     *@ भारत चौहान*